प्रसिद्ध समाजसेवी किरण प्रभाकर ने रविवार को मां मुंडेश्वरी मंदिर में माता रानी के दर्शन किए और देश व प्रदेश की खुशहाली की कामना की। यहां पर 51 बकरियों का अहिंसक बलि चढ़ाई गई एवं उनके द्वारा भंडारे का भी आयोजन किया गया जहां, हजारों लोगों के बीच प्रसाद वितरण किया गया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि आने वाले समय में मैं यहां आस-पास के 100 गांव में स्थापित मंदिरों का भ्रमण करूंगी और मंदिरों को समृद्ध बनाने का काम करूंगी। उन्होंने कहा कि जो मंदिर अच्छी स्थिति में नहीं है, उनका जीवन उद्धार वृक्षारोपण रंग रोगन आदि का कार्य करूंगी। ताकि जब गांव का मंदिर सही अवस्था में रहेगा, तभी गांव की वास्तु सही हो सकेगी। मेरा मानना है कि भगवान को भी अच्छा घर मिलना चाहिए।
आपको बता दें कि किरण प्रभाकर की जन्मस्थली काराकाट है। मंदिर यात्रा पर इन दिनों बिहार में हैं जहां आज उन्होंने मां मुंडेश्वरी का आशीर्वाद लेकर अपनी यात्रा की शुरुआत की है। इसके दौरान उन्होंने बताया कि वह अपने परिवार के साथ माता रानी के दर्शन को यहां आई हैं। यहां आना उनके 7- 8 वर्ष पुरानी मनोकामना है जो आज मां के आशीर्वाद से पूरी हो गई। किरण प्रभाकर ने कहा कि मंदिर यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों से भी मुलाकात और संवाद का अवसर मिल रहा है जिससे मैं उनके सामाजिक जीवन के स्तर को समझ रही हूं। उन्होंने कहा कि लोक कल्याण की भावना मेरे अंदर शुरू से रही है। मैं सबों के घरों को अपने घर की तरह सवारना चाहती हूं। सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा रोजगार और सुरक्षा की पक्षधर हूं। मूलतः मैं यह कहूं कि मैं समाज की समृद्धि चाहती हूं और इसके लिए मैं लगातार कार्य करती रही हूं।
उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में उनकी भागीदारी को लेकर किए गए सवाल पर कहा कि मुझे जब राजनीति में आने का मौका मिलेगा तो मैं अपना बेस्ट करूंगी। मेरा दिल आज उस नेतृत्व में बसता है। जिसने देश में अभूतपूर्व बदलाव लाए हैं और धर्म का ध्वज लहराया है। मैं आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी के शासन से प्रभावित हूं तो मुझे लगता है कि आगे अगर राजनीति में आना हो तो मेरा झुकाव उनकी दल के तरफ ही होगा। उन्होंने विपक्ष की राजनीति पर कहा कि पांडव पांच थे फिर भी 100 कौरवों पर भारी पड़े।
किरण प्रभाकर की शैक्षणिक पृष्ठभूमि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र से रही है। खुद किसान परिवार से आती हैं, इसलिए किसानों से उनका गहरा लगाव रहा है। किरण अपनी मातृभूमि के राजनीतिक और सामाजिक विकास के लिए काम करना चाहती हैं जिसमें उन्हें उनके परिवार का भी साथ मिल रहा है। उन्होंने अपना शेष जीवन अपनी जन्मभूमि को ‘वापस देने’ में समर्पित करने का फैसला किया है। इसी के तहत वह मंदिर यात्रा पर बिहार आई हैं और अपने आस-पास के गांव में जाकर मंदिरों का जीर्णोद्धार करेंगे। साथ ही साथ समाज के गरीब तबकों के लिए भंडारे आदि की व्यवस्था भी करेंगी।