गया से मनोज की रिपोर्ट ,
गया जिले के बोधगया में बौद्ध भिक्षुओं का त्रैमासिक वर्षावास काल की शुरुआत गुरुवार से शुरू हो गई। बोधगया में रह रहे विभिन्न देशों के और महाबोधि मन्दिर के बौद्ध भिक्षु विशेष अनुष्ठान के साथ वर्षावास अनुष्ठान में चले गए हैं। गुरुवार से महाबोधि मंदिर के बौद्ध भिक्षु विशेष अनुष्ठान के बाद वर्षावास पर चले गए। अगले तीन माह तक बौद्ध भिक्षु वर्षावास व्यतीत करेंगे। वर्षावास काल व्यतीत करने वाले भिक्षु एक ही स्थान पर रहकर ध्यान-साधना और पूजा-अर्चना करेंगे। वे विचरण नहीं करेंगे।वर्षावास का बौद्धों में विशेष महत्व है। इस दौरान बौद्ध भिक्षुओं को यात्रा करना वर्जित है। भिक्षु चाहे विश्व के किसी भी कोने में रहे, उन्हें वहीं रहकर बुद्ध के करुणा, शील और त्याग के सिद्धांतों का पूर्णरूपेण पालन करना होता है। अपना सारा समय लोगों की भलाई और तपस्या में लगाना होता है।
इसके पीछे तर्क यह है कि वर्षा ऋतु में कई तरह के छोटे-छोटे जीव जन्म लेते हैं। जो विचरण करने से पैर से दब सकते हैं। इससे जीव की हत्या होती है। इससे बचने के लिए तीन माह वर्षावास व्यतीत किया जाता है। कई देशों के बौद्ध मठों में बौद्ध भक्षिु यहां वर्षावास व्यतीत करने आते है। महाबोधि मंदिर के केयरटेकर भंते दीनानंद व भंते मनोज ने बताया कि बौद्धधर्म में वर्षावास का बड़ा ही महत्व है। इसका प्रारम्भ बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने किया था। बुद्ध ने उपदेश देते हुए कहा था कि वर्षाकाल में गांवों में भिक्षाटन के लिए नहीं जाएं। क्योंकि भिक्षुओं के समूह में चलने से कृषि को काफी नुकसान हो सकता है तथा कीड़े-मकोड़ों का भी डर रहता है। इस दौरान भिक्षु बौद्धधर्म की बारीकियों का अध्ययन करते हैं। वे आषाढ़ पूर्णिमा से आश्विन पूर्णिमा तक किसी एक ही विहार में रहने का संकल्प लेते हैं। वर्षावास काल नौ अक्टूबर को समाप्त होगा। उसके बाद महाबोधि मंदिर में कठिन चीवरदान के परंपरा की शुरूआत होगी। जो एक माह तक विभन्नि बौद्ध मठों में आयोजित किया जाएगा।